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प्रतिष्‍ठा और चरित्र

skpolitician
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जिन परिस्थितियों में आप रहते हैं ,वे आपकी प्रतिष्‍ठा बनाती है ।
जिस सत्‍य में आप विश्‍वास करते हैं वह आपका चरित्र बनाता है ।
प्रतिष्‍ठा वह है ,जो आपको समझा जाता है।
चरित्र वह है जो आप हैं ।
प्रतिष्‍ठा तस्‍वीर है , चरित्र चेहरा हैा
प्रतिष्‍ठा इन्‍सान के बाहर से आती है ,चरित्र भीतर से विकसित होता है ।
प्रतिष्‍ठा वह है जो आपके पास नये समुदाय में आने पर होती है।
चरित्र वह है जो अाप वहां से जाते समय होते हैं ।
आपकी प्रतिष्‍ठा एक पल मे बन जाती है।
आपके चरित्र को बनने में जीवन लग जाता है।
आपकी प्रतिष्‍ठा एक घंटे में जानी जा सकती हैा
आपका चरित्र एक साल तक रोशनी में नहीं आता ।
प्रतिष्‍ठा मशरूम की तरह बढती है।
चरित्र अनंतकाल की तरह स्‍थायी होता है।
प्रतिष्‍ठा वह है जो लोग आपके बारे में आपकी कब्र के पत्‍थर पर लिखते हैं ।
चरित्र वह है जो देवदूत आपके बारे में ईश्‍वर के सामने कहते हैं ।

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